Real miracles of shirdi sai baba in Hindi
पुणे: शिर्डी के साईं बाबा का निधन 1918 में दशहरा के दिन हुआ था। साईं ने दुनिया छोड़ने का संकेत पहले ही दे दिया था, उनका कहना था कि दशहरा का दिन धरती से विदा होने का सबसे अच्छा दिन है। अपने जीवन में साईं ने कई चमत्कार किए जो आज भी पहेली बने हुए हैं। ब्रिटिश शासकों ने भी उनके चमत्कारों की जांच करवाई थी।
भक्तों को देते थे सोने-चांदी के सिक्के..
- साईं बाबा की चमत्कारिक कहानियों के पीछे जीवन से जुड़ी कोई न कोई शिक्षा या मर्म छिपा है।
- शिर्डी के साईं मंदिर का द्वारका माई वह स्थान है जहां साईं बाबा भोजन बनाते थे, वहीं पर धूनी रमाते थे और उसी धूनी का प्रसाद लोगों को देते थे।
- साईं बाबा सशरीर भले ही धरती पर नहीं हैं लेकिन सच्चे भक्तों को हमेशा यह अहसास होता है कि साईं बाबा उनके साथ हैं।
- कहा जाता है कि साईं की धूनी की भभूत से लोगों के दुख-दर्द दूर होते थे।
- समाधि लेने के पहले भी बाबा इसी बटुए में हाथ डालकर अपने भक्तों को सोने-चांदी के सिक्के देकर उनके दुखों को दूर किया करते थे।
अंग्रेज सरकार ने कराई थी जांच
- उस समय अंग्रेज शासकों ने साईं बाबा के इस चमत्कार की जांच के आदेश भी दिए थे, लेकिन वह चमत्कार आज भी एक पहेली बना हुआ है।
- शिर्डी में आज भी हर गुरुवार को साईं की पालकी निकलती है, जिसके दर्शन करने के लिए हजारों भक्तों की भीड़ लगती है।
- समाधि लेने से पहले बाबा अपनी लाठी से छूकर भक्तों की सारी तकलीफें दूर किया करते थे और जब भक्तों के दुख से बाबा खुद निढाल हो जाते तो अपनी चिलम जला लेते थे।
- आज भी साईं की पालकी जब चावड़ी पहुंच जाती है तो उनको चिलम चढ़ाई जाती है। ये चिलम सिर्फ श्रद्धा और आस्था का चढ़ावा ही नहीं है, बल्कि सांई के चमत्कारों से भी जुड़ी हुई है।
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